अनुभूति में
विजय राठौर की रचनाएँ-
कविताओं में-
असुरक्षित नहीं हूँ कदाचित
कलम की नोक पर
जब रोया एक बार
समय का पहिया
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असुरक्षित नही हूँ कदाचित
मैं असुरक्षित नही हूँ कदाचित
मेरे शरीर की करोड़ों कोशिकाओं में
स्पंदित होता है
सृष्टि के अणु-अणु का प्राण तत्व
बहती हैं पसीने की
हज़ारों नदियाँ
दिमाग के कोश खंडों में
संरक्षित है दुनिया के लिये
मंगलकारी सूक्तियाँ
मेरे बलिष्ठ भुजाओं में
कुछ भी कर गुजरने की है क्षमता
और पाँवों में दुर्गम रास्तों को
रौंदने की असीम शक्ति
इसलिये मैं असुरक्षित नहीं हूँ जरा भी
मेरे रोम-रोम में धड़कता है
ईश्वर ही
ईश्वर कभी नही होता असुरक्षित
वह देता है सुरक्षा
पराजित भावनाओं
और दुर्बल संभावनाओं को
१ सितम्बर २००८ |