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भविष्य के प्रति
आशा
बिना तेल के रूखे बाल,
दिन भर के कष्टों से ढीली चाल।
हे! मेरे देश की माताओं,
तुम पढ़ कर ही,
अत्याचारों से छुटकारा पाओ।
छोटी-छोटी बच्चियों की हँसी,
अक्षरों के रूप में,
सलेटों पर खिल रही है खुशी।
देश के लोगों का भविष्य बनता है,
बच्चे, युवा, प्रौढ़, बूढों के बलबूते पर
जब वे आते हैं शिक्षा के धरातल पर।
ऊपर छत आकाश का
आसन नीचे धरती का।
खुशी होती है तब,
जब वे लिख रहे हैं-
पेंसिल से ‘माँ’ और ‘घर।’
घूँघट में सिर ढँका;
ढँकी घूँघट में लाज।
आओ हम सब मिल कर
भविष्य के प्रति आशा रखे आज।
२१ अक्तूबर २०१३ |