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अनुभूति में उमाशंकर चौधरी की रचनाएँ-

आग
छोटी खिड़की
हवेली का सच

 

 

 

हवेली का सच

वह हवेली, जितनी पुरानी थी
उससे अधिक पुरानी थी उसकी स्मृतियाँ।
उसके पुरखे राजा थे, यह
वहाँ के लोगों की स्मृतियों में बसी थी।
अब जबकि राजतंत्र नहीं रहा
वह हवेली अब भी राजभवन है
और उसमें रहने वाले राजा।

उस हवेली के दो मुख्य दरवाज़े थे
और दोनों दरवाज़ों के दोनों ओर
एक-एक शेर था।
उन शेरों के जबड़े खुले थे,
और जीभ के चारों ओर
गिने जा सकते थे उनके दाँत
दो दरवाज़ों के दोनों ओर दो शेर
मतलब चार शेर और चार जबड़े
उन चार जबडों के भीतर थे कई दाँत।

उस राजा के पास अभी भी थे
दो हाथी, और दो मोर।

वे हाथी चिंघाडते नहीं थे, लेकिन
मोर कभी-कभी अपने पंख फैलाकर
नाचने की कोशिश करते थे।

हम यह निरे बचपन से देखते आ रहे थे कि
ठीक दुर्गापूजा के दिन, जो
जात्रा निकलता था, उसमें इस्तेमाल होते थे
ये हाथी।
ढोल-नगाड़े के साथ
ठीक दोनों हाथियों के पीछे वाले रथ पर बैठते थे राजा
अपने पुरखों की तलवार के साथ
पुरखों की वह तलवार कभी
इस्तेमाल हुई या नहीं, बगैर यह जाने
हम यह मानते थे कि अगर उसे बाहर
निकाला जाए, तो उसके साथ ही निकलेगी
इतिहास में दबी हुई कई चीत्कारें
और खून के कई छींटे।
हमारे स्कूल के रास्ते में थी वह हवेली
रहस्य और रोमांच से भरपूर।

बाबा नसीहत देते थे
उस हवेली की ओर नहीं देखने की
लेकिन हम असर देखते थे
उसकी मुंडेर पर दो कबूतर-
जिसे लोग कहते थे,
उस राजा की दो बेटियहाँ,
जिसे उसने जन्मते ही
एक कमरे की ज़मीन में गाड दिया था, ऊबकर
जब उसकी पत्नी ने दो बेटियों को
जनने के बाद फिर से
जुडवाँ बेटियों को पैदा किया था।
हम तनिक ठहरकर
उन कबूतरों की शक्ल में ढूढने लगते थे
उन नहीं देखी हुई बेटियों की शक्लें।

उस पूरे गाँव की फरियहाद
सुनता था वह राजा, अपने राजसी लिबास में।
कि किसने किसकी ज़मीन हडप ली
कि किसके जानवर ने चर लिया खेत
कि किसने हाथ उठायहा अपनी पत्नी पर--
और किसने नहीं रखी
अपनी बूढी माँ की थाली में रोटियाँ

और ऐन निर्णयह सुनाने से पहले
राजा चढ जाता था हाथी पर
और बैठ जाते थे फरियहादी ज़मीन पर, ताकि
एक माहौल तैयहार हो सके राजभवन का।

लेकिन सबसे बडा आश्चर्य यह था कि
लगभग बीस वर्ष पहले, जब
राजा ने दफ़नाया था अपनी बेटियों को
अपने घर के तहाने में, तब
किसी ने नहीं देखा था उसकी पत्नी को
जिसके बारे में दादी कहती थीं
वह एक रूपसी थी, और
जो एक बुलबुल की तरह क़ैद हो गयही थी,
उस पिंजरे में।

अपनी पत्नी को भी मार दिया राजा ने
ऐसा भी लोग सोच सकते थे, लेकिन
ऐसा सोचने में वे दोनों बेटे आड़े आते थे
जो जन्मे थे उसके बाद।
नौकरों को अंदर प्रवेश का
अधिकार नहीं था।
लोग कहते हैं महरी भी चुडैल थी
जो हवेली से बाहर आते नहीं दिखी
किसी को आज तक।

आज जब मरी पडी है सबके सामने
राजा की वह पत्नी, तब
सबने देखे हैं उसके चेहरे और शरीर पर
मार के गहरे निशान
और एकबारगी उधड़ गए हैं, रहस्य के कई पर्दे।

मैं अंदाज़ लगाना चाहता हूँ
हवेली की लम्बाई और चौडाई का
आखिर अंतस्थल का वह कौन सा कोना था
जहाँ पीटता था राजा अपनी पत्नी को
और हम स्कूल जाते बच्चों को
उसकी चीत्कार भी सुनाई नहीं पडती थी।

१३ अप्रैल २००९

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