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अनुभूति में डॉ उमा आसोपा की
रचनाएँ—


कविताओं में
अधूरी बात
मुझे कहने दो

 

 

अधूरी बात

ये बात है उन दिनों की
जब नींद आखों को छू कर
लौट जाती थी
चाँद जागता था सारी रात
बादलों से घिरा
सितारों की महफ़िल में
गुपचुप सी बात बहती थी

रात ठहर जाती थी एक पहर
जानने को ये माजरा क्या है
क्यों गमगीन है ये समां
कौन अकेला है यहां
वो बात जो सिर्फ़
हवाओं को समझ आती थी
और चाँदनी जैसे
आसुओं से नम हो जाती थी

हर पल को रहता था
सुबह की रोशनी का इंतज़ार
चाँद सितारों की बात लेकिन
रात पूरी होने तक अधूरी रह जाती थी।

२४ फरवरी २००५

 

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