अनुभूति में
सोहिनी की रचनाएँ -
छंदमुक्त में
आक्रोश
दोपहरी
पत्थर बोलते हैं
संकलन में
धूप के पाँव-गुलमोहर
का पेड़
गुच्छे भर अमलतास -
साँझ |
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पत्थर बोलते
हैं
जब पत्त्थर बोलते हैं
वे कोई न कोई दास्तान कहते हैं
महल, अटारी के श्वेत, लाल पत्थर,
सामन्तवादी भव्य जीवन की कथा कहते हैं,
या बखानते हैं
मानव जीवन की क्षण भंगुरता का इतिहास
जैसे जमुना-जल में ताजमहल की दिव्य प्रतिच्छवि
ब्रिटिश युगीन इमारतों के पत्थर
अपनी ही गाथा गाते हैं-
"कैसे थे वे दिन!
झाड़ फानूसों के प्रकाश में चलते
बाल नृत्यों और प्रीति भोजों के
हर्षोल्लास के, नित नये आयोजनों के!
आज के ऊँचे, गगनचुंबी भवन
सीमेंट-ईंटों के माध्यम से
करूण कहानी साहस की कहते
जतलाते हैं-
कैसे मानव ने ऊँचे से ऊँचा
निर्माण किया है
चूने पत्थर की शैली में
कविता की है
पर जीवन की सरल सहजता को गँवा दिया है। |