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अनुभूति में सोहिनी की रचनाएँ -

छंदमुक्त में
आक्रोश
दोपहरी
पत्थर बोलते हैं

संकलन में
धूप के पाँव-गुलमोहर का पेड़
गुच्छे भर अमलतास - साँझ

 

दोपहरी

कटावदार जाली के झरोखे से
प्रकाश बिम्बों में
दिन टुकड़ा टुकडा ढल रहा है,
और धूप अपने दुपट्टे में सिमटती जा रही है।
सूरज की लाली को गुलमुहर के पुष्पों ने
चुरा लिया है।
और दोपहरी एक पिघलती शमा है
जो कि ढलने का सरंजाम जुटा चुकी है,
अवकाश के इन क्षणों में,
वायुमंडल किसी भव्य झाड़फानूस सा टंग गया है।
दूसरे पहर के इस समयाँश में
एक स्थायित्व है,
जो कि कहते हैं, जीवन में भी आता है।
और आकर जल्दी ही टल जाता है।
क्यों कि हर दोपहरी को
शाम का स्वागत करना होता है न!

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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