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अनुभूति में शुभम तिवारी शुभ की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
घर
जले हुए मकान की खिड़की पर
टूटे हुये मकान से
बाहर आओ
मैं और बंजारा

 

बाहर आओ

तुम बेलन छोड़ो
डण्डा लेलो
खुरपी,चैन और हाकी लेलो
छोड़ो नथुनी, काजल और फिगर
दूध, दही और घी को खाओ
छोड़ो बैग में शृंगार की चीजें रखना
अगर हो सके तो कट्टा रख लो
या रख लो उसमें हिम्मत को तुम

निकलना शुरू करो अब रातों को तुम
निकलो कूचों, शहर और देश में तुम
समय नहीं है जल्दी निकलो
जल्दी निकलो जल्दी निकलो
देखो फिर से कोई मरा है
लड़ते-लड़ते कोई डरा है
छोड़ो अब तुम बाहर भी आओ
फूलन सा तेवर दिखलाओ
अँधेरा बहुत है डर न जाओ
हिम्मत करके बाहर तो आओ
जल्दी आओ जल्दी आओ
इज़्जत को अब धता बताओ
लाँघो देहरी बाहर तो आओ
जल्दी आओ जल्दी आओ।

१ अक्तूबर २०१८

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