अनुभूति में
क्षिप्रा वर्मा की रचनाएँ
तीन छोटी कविताएँ
तुम कौन
ग़ज़ल न गीत
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ग़ज़ल न गीत
ग़ज़ल है न गीत है
यह,
मुक्तक है न छंद है!
केवल परिलक्षित करता, यह
जो मन मस्तिश्क में द्वंद्व है!!
मत कहो कविता इसे
तुम,
मत कहो यह छंद है!
ह्रदयगार में यहाँ अनेकों
ज्वालामुखियाँ बंद हैं!!
फूट पड़ीं अतिशय
ताप से,
चिंगारियाँ यहाँ चंद हैं!
पीड़ा का, ताप का- कविता से,
चिरंतन से संबध है!!
अवनि कंपित, हुई
ज्वाला पिघलित,
बह चली जिधर इसे बहना है!
कविता, मुक्तक या ग़ज़ल समुचित,
कह लो, तुम्हें जो भी कहना है!!
या तो कोरी बकवास
ही कहो,
चाहो तो परिहास भी कर लो!
जब तबियत से कोई गाए,
शब्द कहाँ माने रह जाए!!
9 अक्तूबर 2005 |