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अनुभूति में शिज्जु शकूर की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
उपयोगिता
उम्मीद... हौसला...उद्देश्य…
एक शाम
जियें शुद्ध हवा में

मानवता जयी हो

 

उम्मीद... हौसला...उद्देश्य….

पतझड़ के सूखे हुये पत्तों के
बीच उगता एक अंकुर,
नवजीवन के उदय की
एक उम्मीद जगाता,
नये स्वप्न दिल में लेकर
जाने कितनी
निराशाओं के बीच खड़ा है

रेत से ढँकी हुई मरुभूमि में
काँटों का तन ले कर खड़े हैं
कैक्टस के कुछ पौधे
हाँ ये उनका हौसला है
जीने की चाहत है
आँधियों से लड़कर,
गर्मियों को सहकर,
अपने अंदर नमी सँभाले हुये खड़े हैं!

एक टूटा हुआ पेड़
नाले के दोनों छोर को जोड़ता हुआ
एक पुल सा
बियावान में
अपनी मौजूदगी को सार्थक करता हुआ
मानो कह रहा हो
टूटा हूँ तो क्या
अब
मेरा उद्देश्य बदल गया है

७ जुलाई २०१४

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