अनुभूति में
शेषनाथ प्रसाद की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अपने पलों के अंतरिक्ष मे
एक किरण सा
संगुम्फन |
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संगुम्फन
मेरी अनुभूति के किन्हीं क्षणों में
मेरे अस्तित्व के परमाणु
कुछ इतने सघन हो उठे
कि मेरे प्राणों ने
एक वर्तुल बना लिया
उस वर्तुल में कुछ उद्भास जगे
और मेरा अंतःकरण
एक मौन अंतर्ध्वनि से तरंगित हो उठा
सृष्टि के पल
अपने अंतर्बाह्य विकारों में आपूरित हो उठे
इसी क्षण
भावानुभूतियों के अंकुरण से
मैं भावाकुल हो उठा
मेरे भावापन्न पल
मुझे ठेलकर उस बिंदु तक ले गए
जहाँ संवेदना के आकाश ने
उस ठोस धरती का रूप लिया
सृजन के क्षण अकुला उठे
अभिव्यक्ति के रूप को ढाँचा मिला
और मेरे हृदय की तरंगों ने
अपने को रच-बुन कर
अपनी ही शाखों पर कुछ फूल खिलाए
मैंने शाखों से अलग किए बिना ही
एक तरल सूत्र में गूँथ लिया
यह गुंथन ही
इस संगुंफन में रूपांकित उठा है
एक पुष्पमाला की तरह
१५ अप्रैल
२०१३ |