अनुभूति में
सत्य
प्रकाश बाजपेयी की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
अंतर्मन
अनंत चतुर्दशी
आज माँ आई थी
घर
देखा देखी
प्रतीक्षा
भूख
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घर
घर क्या है ?
चार दीवारे,
दो वक़्त कि रोटी,
या कुछ और...!
या कुछ और...
जो रखता है, महफूज़
अपने दरमिया
या कुछ और...!
जो देता है, सुकून
हर पल, हर छीन
या कुछ और...!
जहाँ जीते है, ज़ज्बात तले
या कुछ और
हर अंशू है, जहाँ गोद में पले
घर क्या है..?
चार दीवारे,
दो वक़्त कि रोटी
कुछ थोपे रिश्ते
या कुछ और...?
१४ मई २०१२
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