अनुभूति में
सत्य
प्रकाश बाजपेयी की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
अंतर्मन
अनंत चतुर्दशी
आज माँ आई थी
घर
देखा देखी
प्रतीक्षा
भूख
|
|
अंतर्मन
चीखूँ चिल्लाऊँ या खामोश रहूँ
सब एक सा है,
निर्दोष न रह पाऊँगा...
इस रणभूमि में ।
हार और जीत स्वरूप बदल सकते है,
दामन भी.
परन्तु आदि, अन्त और कारक न बदलेगा
वही
अहम, क्रोध, पश्चाताप मिश्रित ।
धर्म अधर्म कौन तौले
सारथी कहाँ ?
फिर दुर्योधन की सेना भी नही
सभी है, मध्यम वर्ग से
निर्दोष भी
पापी भी ।
१४ मई २०१२
|