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अनुभूति में सत्य प्रकाश बाजपेयी की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
अंतर्मन
अनंत चतुर्दशी
आज माँ आई थी
घर
देखा देखी
प्रतीक्षा
भूख

 

अंतर्मन

चीखूँ चिल्लाऊँ या खामोश रहूँ
सब एक सा है,
निर्दोष न रह पाऊँगा...
इस रणभूमि में ।
हार और जीत स्वरूप बदल सकते है,
दामन भी.
परन्तु आदि, अन्त और कारक न बदलेगा
वही
अहम, क्रोध, पश्चाताप मिश्रित ।
धर्म अधर्म कौन तौले
सारथी कहाँ ?
फिर दुर्योधन की सेना भी नही
सभी है, मध्यम वर्ग से
निर्दोष भी
पापी भी ।

१४ मई २०१२

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