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अनुभूति में संजीव बख़्शी की रचनाएँ-

कविताओं में-
चमकीली आँखों वाली मछली
यह देखिए यह देखिए
लक्खा लक्खा

 

चमकीली आँखों वाली मछली

एक चमकीली आँखों वाली मछली
पानी के उपर उछलती है
पूरी ताक़त के साथ
एक छोर पर मैं खड़ा था यों ही
कि अचानक मुझे लगता है
मछली की नज़र मुझ पर थी
बस नज़रें मिली
और छपाक से मछली पानी में घुस गई

पानी में एक हलचल पैदा हुई
शांत हो गई।

मेरी आँखें एक तरफ़ा
बतियाते रही मछली से
इस बातचीत में मछली की मूक आँखें
शामील थी

''ऐ मछली
तुमने क्या देखा मेरी आँखों में?
मुझे क्या जाना इस आधे क्षण में?
इस किनारे खड़े सभी लोग
तुम्हें एक जैसे लगे होंगे
कैसा दिखा होऊँगा मैं?
कैसा दिखा होगा वह पेटू
गोल-गोल आँखों से
कैसा दिखता होगा यह संसार

मैं अपनी आँखें गोल-गोल बनाता हूँ
पेटू को घूरता हूँ
बड़ा बेपरवाह खड़ा है पेटू
बस आधे क्षण के लिए मिलती है नज़रें कि
अचानक महसूस होता है
मैं पानी के उपर अभी उछाल में हूँ
और अब पानी के भीतर छपाक से
घुसने वाला हूँ
दूसरे क्षण पेटू ग़ायब था
मैं शायद
बहुत गहरे पानी में नीचे

वहाँ जो थे उन्हें मैं मछलियाँ नहीं कह रहा था
मेरी तरह गोल गोल आँखों वालों की
भीड़ थी
पानी मुझे पानी जैसा महसूस नहीं हो रहा था
इच्छा हो रही थी उछाल भरूँ पानी के उपर
ज़रा देखूँ कौन-कौन खड़े हैं मेरी प्रतीक्षा में
इच्छा हुई उछाल भरूँ
गहरी हुई इच्छा, और गहरी
यह सब कुछ एक उर्जा में तबदील हो गई
माँस पेशियों पर जैसे कुछ बल पड़ा
आधे क्षण के लिए
पूरा शरीर था हवा में
सपने की तरह किनारा था
वहाँ हँसती खिलखिलाती मछलियाँ थी
मैं देख रहा था
उनकी आँखें गोल-गोल नहीं थी
अजीब-सी भूख दिख रही थी उनकी आँखों में
वह मछली भी थी वहाँ
'चमकीली आँखों वाली'

आश्चर्य था घोर आश्चर्य
हतप्रभ था मैं यह सब देख-देख

खोजी आँखों ने पूरा किनारा देख लिया
काश कहीं कोई इंसान होता
भले ही कोई जाल लिए, गरी लिए

मेरी आँखें नम थी
आँखों में भर आई पानी ने
सारा दृश्य धुमला किया हुआ था
जाल की तरह एक बार रुमाल लहराता हूँ
और आँखें पोंछ लेता हूँ

किनारे पेटू के हाथ अब एक गरी थी
पास झोले में कुछ मछलियाँ।

9 अक्तूबर 2007

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