अनुभूति में
संजय कुमार की रचनाएँ -
टोपी और जूता
तथाकथित
लाचारी
शोर
हाथ
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हाथ
इंसानियत के धागे
पर
चलती तलवार की चमक
मैं नहीं देख रहा हूं
मैं तलवार की मूठ पर
हाथ देख रहा हूं
हाथों की कई शक्लें
देख रहा हूं
हाथों के तेवर मिजाज़
और इरादे देख रहा हूं
हाथों की आँखें ऊबलती
देख रहा हूं
हाथों की लपलपाती जीभों से
टपकता लार देख रहा हूं
हाथों के नुकीले दांतों का
पैनापन देख रहा हूं
हाथों के जेहन में
हवस देख रहा हूं
हाथों को मुक्कों में
तब्दील होते देख रहा हूं
इंसानियत के धागे पर
चलती तलवार की चमक
मैं नहीं देख रहा हूं
मैं तलवार की मूठ पर
हाथ देख रहा हूं ।
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