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अनुभूति में संजय अलंग की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
ईश्वर का दुख
गुलेल
झुमका बाँध
प्यास
सलवा जुडूम के दरवाजे से

 

गुलेल

पेडों पर उछलते कूदते, आमा डगाली खेलते
निगाहें तलाशती रहती
व्ही आकार अँगूठे मोटाई की गोल टहनी
मिलते ही आल्हाद छा जाता
छूट जाते सभी खेल
सावधानी से उसे काटते, छीलते, तराशते
निखारते आकार और देते सुगढ़ता उसे
तलाशते रबर की पुरानी ट्यूब
खंगालते कबाड़, खाक छानते साइकिल दुकानों की
करीने से काटते दो पट्टियाँ ट्यूब से
बराबर आकार की लंबी
निकालते ढेर सारी पतली बँधनी
मोची से बनवाते चमौटी
देखते घिसे और तराशे जाते चमड़े को
निहारते दोनों किनारों पर छेदों का कतरा जाना
आँखों में बेचैनी छटपटाती
मस्तिष्क में उत्तेजना
वी आकार डंठल पर लंबी पट्टी बैठाते, जमाते
बाँधते सँभाल-सँभाल खींचकर बँधनी
रबर पिरो दोनो सिरों पर बैठाते चमौटी
खींच कर परखते तनाव
आकाश की ओर अनजाने निशाने पर तानते
एक आँख बंद
निशाना साध खुली आँख तक खींच लाते
उछालते गोटी हवा में, दन से
इठलाते विजेताओं सा गले में डाल
क्राफ्ट मेले से, सौहार्द के लिए
खरीदते हुए गुलेल, याद आया मुझे

११ मार्च २०१३

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