वक़्त की दहलीज़ पर
न कोई दोष मेरा
न कोई दोष तेरा
किस्मत महज़ फिसल गई
वक़्त की दहलीज़ पर!
स्वप्न कि जैसे दूबों पर
इंद्रधनुष भोर के
अब निराश्रित यों कि जैसे
पंख टूटे मोर के
गल गई किरन-किरन
मर गया सवेरा
उमर-सी तुम निकल गई
प्रथम-प्रणय तीज पर!
न कोई दोष मेरा
न कोई दोष तेरा
किस्मत महज़ फिसल गई
वक़्त की दहलीज़ पर!
शब्द कि ऐसे देते दस्तक
सुधियों के द्वार पर
पत्र लिए जैसे कोई
कभी-कभी त्यौहार पर
गिर गई पलक-किरन
जी गया अंधेरा
बरफ़-सी कुछ पिघल गई
श्वास के तावीज़ पर!
न कोई दोष मेरा
न कोई दोष तेरा
किस्मत महज़ फिसल गई
वक़्त की दहलीज़ पर!
२८ अप्रैल २००८ |