अनुभूति में
डॉ. रमा द्विवेदी की रचनाएँ
तम को बाहर करना है
होली गीत
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तम
को बाहर करना है अमावस
की रात्रि जैसा,
अंतस में अंधकार का धरना है।
ज्ञान का दीप जला करके,
इस तम को बाहर करना है।।
बुराई पर हुई सत्य की विजय,
यह दीपमालिका कहती है।
कभी सहो न अत्याचार को,
जलती दीपशिखा यह कहती है।।
दरिद्रता की पीठ पर बैठ,
मानव, पूजन लक्ष्मी का करता है।
होता है दरिद्र और भी वो,
जो भाग्य भरोसे रहता है।।
दीपशिखा यह सिखलाती,
मानव तुमको जलना होगा।
जल-जल कर, तप-तप कर,
जीवन में प्रकाश भरना होगा।।
पुस्र्षार्थ करोगे यदि मन से,
लक्ष्मी स्वयं ही आएँगीं।
कामना पूर्ण होगी तेरी,
फिर लौट कभी न जाएँगी।।
अगर दीपावली मनाना हो,
तो प्रेम का दीप जलाओ तुम।
पी जाओ तमस विश्व का तुम,
ऐसी दीपावली मनाओ तुम।।
सच्ची दीपावली तो तब होगी,
जब कोना-कोना उजला होगा।
कमजोर हैं जो तन-मन-धन से,
उनको भी आगे लाना होगा।।
भारत का जन-जन जब,
खुशियों से लहराएगा।
सही मायनों में तब ही,
मानव, दीपावली मनाएगा।।
२४ अक्तूबर २००५
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