अनुभूति में
डॉ. रमा द्विवेदी की रचनाएँ
तम को बाहर करना है
होली गीत
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होली
गीत
आयी है रंगो की बहार
गोरी होली खेलन चली
ललिता भी खेले विशाखा भी खेले
संग में खेले नंदलाल
गोरी होली खेलन चली।
लाल गुलाल वे मल-मल लगावें
घोवत होवें लाल-लाल
गोरी होली खेलन चली।
रूठ्ठी राधिका को श्याम मनावें
पे्रम में हुए हैं निहाल
गोरी होली खेलन चली।
सब रंगों में पे्रम रंग सांचा
लागत जियरा मारै उछाल
गोरी होली खेलन चली।
होली खेलत वे ऐसे मगन भयीं
मनुंआ में रहा न मलाल
गोरी होली खेलन चली।
तन भी भीग गयो मन भी भीग गयो
भीगा है सोलह शृंगार
गोरी होली खेलन चली।
इसको सतावें उसको मनावें
कान्हा की देखो यह चाल
गोरी होली खेलन चली।
कैसे बताऊँ मैं कैसे छुपाऊँ
रंगों नें किया है जो हाल
गोरी होली खेलन चली।
आओ मिल के प्रेम बरसाएँ
अंबर तक उडे गुलाल
गोरी होली खेलन चली।
१ मार्च २००६
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