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अनुभूति में राजेश जोशी की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
पक्की दोस्तियों का आईना
माँ कहती है
मैं अक्सर अपनी चाबियाँ खो देता हू
संग्रहालय
हर जगह आकाश

 

संग्रहालय

वहाँ बहुत सारी चीज़ें थी करीने से सजी हुई
जिन्हें गुज़रे वक़्त के लोगों ने
कभी इस्तेमाल किया था।

दीवारों पर सुनहरी फ़्रेम में मढ़े हुए
उन शासकों के विशाल चित्र थे
जिनके नीचे उनका नाम और समय भी लिखा था
जिन्होंने उन चीज़ों का उपयोग किया था
लेकिन उन चीज़ों को बनाने वालों का
कोई चित्र वहाँ नहीं था
न कहीं उनका कोई नाम था।

अचकनें थीं,
पगड़ियाँ थीं, तरह-तरह के जूते और हुक्के थे।
लेकिन उन दरज़ियों, रंगरेज़ों , मोचियों और
हुक्का भरने वालों का कोई ज़िक्र नहीं था।
खाना खाने की नक़्क़ाशीदार रकाबियाँ थीं,
कटोरियाँ और कटोरदान थे,
गिलास और उगालदान थे।
खाना पकाने के बड़े बड़े देग
और खाना परोसने के करछुल थे
पर खाना पकाने वाले बावरचियों के नामों का
उल्लेख
कहीं नहीं था।
खाना पकाने की भट्टियाँ और बड़ी बड़ी सिगड़ियाँ थीं
पर उन सिगड़ियों में आग नहीं थी।

आग की सिर्फ़ कहानियाँ थीं
लेकिन आग नहीं थी।
आग का संग्रह करना संभव नहीं था।
सिर्फ आग थी
जो आज को बीते हुए समय से अलग करती थी।

४ मार्च २०१२

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