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अनुभूति में राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आदमी और साँप
आसमान का रोना
गाली बकते बच्चे
मैं
मैं रहबर

 

मैं रहबर

मैंने
अपनी राहें खुद खोजी हैं
भटकना मेरे काम आया है
जब जब मुड़ी हैं
शहर की सड़कें
हर मोड़ पर मेरा नाम आया है
मुझे पट्टिकाएँ लगाने का शौक नहीं
मेरे पैरों ने निशान बनाया है 
लोग कहते हैं उन्हें पगडंडियाँ
जिन्होंने भटकों को घर पहुँचाया 

९ जुलाई २०१२

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