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अनुभूति में राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आदमी और साँप
आसमान का रोना
गाली बकते बच्चे
मैं
मैं रहबर

  आसमान का रोना

एक बार
बेहद सूखा पड़ा
अनाज पैदा होना बंद हो गया,
पानी के बिना
धरती का सीना तक फट गया
लोग दुआ करने लगे,
आसमान की ओर हाथ उठा कर,
जार जार रोने लगे
यह देख,
आसमान द्रवित हो उठा
वह बादल बना कर
अपना प्यार बरसाने लगा
पानी इतना बरसा,
इतना बरसा
कि बाढ़ आ गयी
धरती जलमग्न हो गयी
मवेषी मरने लगे
पहले घर डूबे,
फिर लोग डूबने लगे
यह देख कर
लोग बिलखने लगे,
आसमान को कोसने लगे
मनुष्य की यह उद्दंडता देख कर
आसमान ग्लानि से भर उठा
उसकी आँखों में सतरंगी आँसू झिलमिला रहे थे 
यह देख कर बादल
फूट फूट कर रोने लगा

९ जुलाई २०१२

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