अनुभूति में
डॉ राजा करैया की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
गंतव्य
ठहरो एक निमिष
दृष्टिबंध
मुग्धा
स्नेहिल स्पर्श
स्वप्न
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गंतव्य
दूरंत है
संभावनाओं का क्षितिज
अपनी आकांक्षाओं की
परिधि से अभी
वृत्ति की त्रिज्या में
होना है परिष्करण
मन का व्यास
पाएगा विस्तार तभी
बुद्धि की ऊँचाई का
तर्क से तिर्यक स्पर्श
परिधि पार
दिव्य ज्ञान बिंदु से
क्षितिज के कोण को
देख सके वही
अपना गंतव्य
अंतरिक्ष का अनंत।
२४ जुलाई २००६
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