अनुभूति में
डॉ राजा करैया की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
गंतव्य
ठहरो एक निमिष
दृष्टिबंध
मुग्धा
स्नेहिल स्पर्श
स्वप्न
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दृष्टि बंध
बार-बार
डूबें उतरायें
स्निग्ध कैसा है दृष्टिबंध
लहर लहर समंदर है।
भोली निर्दोष आंखों में
एक तीर्थ देह धन
प्रेम भरा अंबर है।
निस्पृह वासना रहित
जिज्ञासु सम्मोहन
अतल तन अंदर है।
अतृप्त प्यास संवेदन
मौन रूप आकर्षण
सौंदर्य स्वयं मुखर है।
२४ जुलाई २००६
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