अनुभूति में
प्रेमचंद गाँधी की रचनाएँ
छदमुक्त में-
एक दुआ
एक बाल
मम्मो के लिये
मेरा सूरज
याद |
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मेरा सूरज
रोज़ शाम उगता है सूरज
मेरी आँखों के सामने
दिन भर की थकान के बाद
जब जवाब दे जाता है
शरीर का पोर-पोर
तुम्हारी मुस्कान की
यह कभी ना खत्म होने वाली कौंध
जगा देती है तमाम इंद्रियाँ
दुनिया के लिए उगता होगा
अलस्सुबह पूरब में सूरज
मेरे लिए तो
तुम्हारे माथे पर चमकती
बिंदिया की शक्ल में नुमायाँ होता है।
२८ फरवरी २०११ |