न ययौ न तस्थौ
स्मृतियों की उनींदी गुफ़ाओं से
खोए हुए शब्द
मुझे बुलाते हैं
मेरी अजन्मी कविताओं की
सोई हुई पंक्तियाँ
साँकलें तोड़
किसी जागी हुई
पहाड़ी नदी की तरह
निर्बाध बहना चाहती है
मंत्रचालित पगडंडी-सा
समानांतर चलता मैं-
उनमें डूब नहीं पाता
उनसे दूर नहीं जाता
१६ जनवरी २००७