अनुभूति में
नीरज शुक्ला की रचनाएँ -
कविताओं में--
एक नीली नदी
कृष्ण विवर सी
बदलते परिवेश
शब्दों को
हाइकु में--
नीरज के हाइकु
संकलन में-
प्रेमगीत-- प्रेम
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एक नीली नदी
एक नीली नदी
आज भी मेरे सपनों में बहती है
सौम्य, सरस रश्मियों का आवरण ओढ़े
आज भी कल-कल कर पुकारती है मुझे
जीवन के सन्नाटों को चीरते हुए
अचानक रुक जाती है
चलते-चलते
मेरी आँखों में झाँकती है - कुछ तो कहो
मैं नि:शब्द जड़वत रह जाता हूँ
प्रस्तर की तरह
वो आज भी बढ़ती है मेरी तरफ़
चार कदम, आलिंगन के लिए
और ठिठक जाती है
जाने क्या सोचकर
मैं जानता हूँ
वो आज भी है प्रतीक्षारत
चिर-मिलन के लिए
ताकती आँखों के साथ। |