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अनुभूति में नीरज शुक्ला की रचनाएँ -

कविताओं में--
एक नीली नदी
कृष्ण विवर सी
बदलते परिवेश
शब्दों को

हाइकु में--
नीरज के हाइकु

संकलन में-
प्रेमगीत-- प्रेम


  बदलते परिवेश

बदलते परिवेश में
बदल गया है बहुत कुछ
फिर भी उन्हें तलाश हैं
पुराने आयाम की।
फूल अब डालियों में नहीं उगते
फिर भी उन्हें इंतज़ार है
बसंत का।
होठों पर मुस्कुराहट
अब पुरानी बात हो गई
लेकिन वो आस लगाए बैठी हैं
एक ठहाके की।
संवेदनाएँ कब की मर गईं
हैं हमारी
और वो प्रतीक्षारत हैं
एक आँसू के।
जीवन शब्द बेमानी हो गया है अब
आँखे अब तकती हैं
कालपथ की ओर।

 

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