चार छोटी कविताएँ
सिर्फ एक विचार
'मैं'
इन्द्रियों और शरीर के साथ
संदूषित
सिर्फ एक विचार हूँ
जब भी कोशिश करता हूँ
पकड़ने की इसे
खो देता हूँ कई अन्य विचार
और पुनः
रह जाता हूँ
'मैं'
इन्द्रियों और शरीर के साथ
संदूषित
सिर्फ एक विचार
***
पाळसिया
दादा जी
की वो पुरानी हवेली
जिसकी मुँडेर पर
रखा वो मिटटी का
पाळसिया
आकाश की ओर मुँह किये
तकता है अब भी
उन परिंदों को
नहीं आते जो अब
सुस्ताने और प्यास बुझाने
1
जो स्वयं
ना जाने कब से
प्यासा है
दादा जी की
प्यासी आँखों की तरह
जो तकती रहती है
आसमान से
संस्कारों के उस
सूखे पड़े पाळसिये को
***
आह ! ठंडी रात
और झील
में
उतरा चाँद,
उठ रहा है दूर कहीं
दृश्य तेरे होने का
कतरा-कतरा गिर रही है
तेरी आँखों की चमकीली शबनम
झील के उस पार
देखा है अभी
चाँद एक चलता हुआ
***
चाँद
दूर तक फैले
शफ्फाक़ चाँदनी के आँचल में
चाँद
कितनी शिद्दत से सो रहा है
सितारे मुह छुपाये
चल दिए जाने कहाँ?
रात झलती है
हवा की लहरों पे
एक प्रेम राग
सुबह होने तक,
अरे ! चाँद आज चोरी नहीं हुआ.
२४ दिसंबर २०१२ |