अनुभूति में
कुमार मुकुल
की रचनाएँ--
कविताओं
में-
चाँदनी का टीला
दफ़्तर में लड़की
प्यार-
दो कविताएँ
बेदिनी में
चाँद
हथियार
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प्यार- दो
कविताएँ
एक
प्यार आलोकित कर जाता है
सुबहों को
और शामों को
बनाता चला जाता है रहस्यमयी
प्यार
जैसे तारों से आती है टंकार...
और सारा दिन निस्तेज पड़े
चाँद की रौशनी
वापस आने लगती है
प्यार
कि आत्मा अपने ही शरीर से बेरुखी करती
कहीं और जा समाने को मचलने लगती!
प्यार
और खुशियों का ठाठें मारता पारावार चतुर्दिक
और आसमान डूबता चला जाता है समंदर में
उसके अनंत खारेपन को
अपनी नीली सुगंध से रचता...
रौशन करता
कि शब्दों की अनंत लड़ी
फूटने-फूटने को होती है जेहन से
और इस नाजुक लड़ी में कैद होता चला जाता है
कोई भी कठोरतम हृदय
प्यार
और अरुणाकाश में पसरने लगते हैं सप्तवर्णी रंग
पंछियों के परों को स्निग्ध और उर्जामयी करते हुए
प्यार
और पूरी रात नशे में फूटते हरसिंगारों को सँभालती
थकने लगती है रात
और जा गिरती है सुबह की गोद में
सुगंध से पूरित!
प्यार
और दो नामालूम से जन
एक दूसरे को बनाना शुरू करते हैं विराट
तो फिर तमाम मिथकों और दंतकथाओं को
उनका पार पाना कठिन पड़ने लगता है
प्यार
एक धीमी-सी आकुल पुकार
जो बहुगुणित होती कंपाने लगती है
आकाशगंगाओं को
और तारों की छीजती बेचैन रौशनी
अनंत प्रकाश बिंदुओं में
तब्दील होती चली जाती है...
४ अगस्त २००८
दो
प्यार
जैसे एक हाहाकार
आकुल व्याकुल जनों की नींद में जगता
दु:स्वप्नों की तरह
जनसमुद्र की अनंत पछाड
तोड़ती हाड तट का
प्यार
एक विनम्र इनकार
विश्वबाज़ार के सुनहले ऊँटों को
कि हम जो भी जैसे भी है
स्वतंत्र और समृद्धि हैं
अपनी आत्मा के ताप के साथ
प्यार
कि हाँ तुम अब भी
ले सकते हो हमसे
अनंत उधार शब्दों का
और उसका मोल चुकाए बिना
उससे अपनी किस्मत
चमकाए फिर सकते हो
४ अगस्त २००८
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