अनुभूति में
केशरी नाथ त्रिपाठी की रचनाएँ
कविताओं में-
अभिलाषा
क्रम
संकलन में
आमंत्रण |
|
अभिलाषा
गाँव की अमराइयों में
नव सुहागिन
एक तिनका मुँह दबाए
शून्य नभ को देखती थी
सोचती थी
बौर मेरा भी खिलेगा एक दिन।
विहँस कर बोली सखी
तू देखती क्या
है वहाँ क्या
एक सूरज, एक चंदा और तारे
क्या मिलेगा
रोज़ तू इनको निहारे?
कह उठी वह
हाँ मिलेगा
एक सूरज, एक चंदा
और तारे
और फिर यशगान
कुल का
जो मुझे आभास देगा
पूर्णता का।
खिंच रही आकृति
जहाँ पर वंशजों की
गगन ही तो
तृप्ति का सागर बनेगा।
१५ दिसंबर २०००
|