मेरे वासंती गीतों की
लय में अब तुम भी रम जाओ
थोड़ा भी संकोच अगर हो
अंतरमुख हो फिर खुल जाओ
मलय वायु के सुमधुर झोंके
जब जब तन को छूने आएँ
उस सिहरन को खुद समेट कर
अपने को चिह्नित कर जाओ
अंतर्मन के स्पंदन जब
शब्दों में मुखरित होने हों
उनको लय स्वर में समेट कर
खुद बस उनकी ध्वनि बन जाओ
विस्तृत गगन तले का जीवन
चिंतन बंधन रहित रहे जब
बंजारा मन की मति गति स्वर
जब मुखरित हो गीत सुनाओ
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