अनुभूति में
कविता रावत की रचनाएँ-
असहाय वेदना
इंसानियत भूल जाते जहाँ
जग में कैसा यह संताप
लाख बहाने |
|
जग में कैसा है यह
संताप कोई भूख से मरता,
तो कोई चिन्ताओं से है घिरा,
किसी पर दु:ख का सागर
तो किसी पर मुसीबतों का पहाड़ गिरा।
कहीं बजने लगती हैं शहनाइयाँ
तो कहीं जल उठता है दु:ख का चिराग,
कहीं खुशी कहीं फैला दु:ख
जग में कैसा है यह संताप।।
कोई धनी तो कोई निर्धन
किसी को निराशा ने है सताया
प्रभु की यह कैसी लीला!
किसी को सुखी, किसी को दु:खी बनाया।
किसी की बिगड़ती दशा
तो किसी के खुल जाते हैं भाग,
देख न पाता कोई कभी खुशियाँ
जग में कैसा है यह संताप।।
कोई सिखाता है प्रेमभाव
पर किसी की आँखों में झलकती नफरत,
कोई दिल में भरता खुशियाँ
तो कोई भरता है दिल में उलफत।
किसी के सीने में दर्द छिपा
कोई उगलता शोलों की आग
कोई संकोच, कोई दहशत में
जग में कैसा है यह संताप।।
कोई शोषित, कोई पीड़ित
किसी को निर्धनता ने है मारा,
कोई मजबूर कोई असहाय
किसी को समाज ने है धिक्कारा।
सजा मिलती किसी और को
पर कोई और ही करता है पाप
कहीं धोखा, कहीं अन्याय फैला
जग में कैसा है यह संताप।।
२३ फरवरी २००९ |