असहाय वेदना
वो पास खड़ी थी मेरे
दूर कहीं की रहने वाली,
दिखती थी वो मुझको ऐसी
ज्यों मूक खड़ी हो डाली।
पलभर उसके ऊपर उठे नयन
पलभर नीचे थे झपके,
पसीज गया यह मन मेरा
जब आँसू उसके थे टपके।
वीरान दिखती वो इस कदर
ज्यों पतझड़ में रहती डाली,
वो मूक खड़ी थी पास मेरे
दूर कहीं की रहने वाली।।
समझ न पाया मैं दु:ख उसका
जाने वो क्या चाहती थी,
सूनापन दिखता नयनों में
वो पल-पल आँसू बहाती थी।
निरख रही थी सूनी गोद वह
और पसार रही थी निज झोली
जब दु:ख का कारण पूछा मैंने
तब वह तनिक सहमकर बोली-
'छिन चुका था सुहाग मेरा
किन्तु अब पुत्र-वियोग है भारी,
न सुहाग न पुत्र रहा अब
खुशियाँ मिट चुकी है मेरी सारी।'
'असहाय वेदना' थी यह उसकी
गोद हुई थी उसकी खाली,
वो दुखियारी पास खड़ी थी
दूर कहीं की रहने वाली।।
२३ फरवरी २००९
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