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अनुभूति में करुणेश किशन की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
जनाब बचपन से देखता हूँ
दीवार की खूबसूरती
धुंध
प्रियतमा चाय
मेरी अँगूठी का नगीना

  धुंध

उसी शहर में कहीं बसते हैं हम....
जो दूर है मेरी नजरों से
मेरी खिड़की से आता धुंध
और बाहर का नजारा थोडा शांत

मेरे पलकों से समानता रखने वाली
मेरे घर की वो खिड़कियाँ
पल्ले जिसके बार-बार खुल रहे
आने वाली ठंडी हवा के झोंकों से

बाहर निकालूँ आशाओं का हाथ
पल्ले को टीकाकार
और छू लूँ छत से टपकती
पानी की बूँदों को

वो अंतहीन धुंध बढ़ती ही जा रही
मेरे ही बगीचे में
साथ के बगीचे में है
स्फूर्ति की धूप

५ मई २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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