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अनुभूति में करुणेश किशन की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
जनाब बचपन से देखता हूँ
दीवार की खूबसूरती
धुंध
प्रियतमा चाय
मेरी अँगूठी का नगीना

  दीवार की खूबसूरती

शागिर्द हूँ मैं उसका
झाँकते हुए पल्लू से
शर्माती हैं
आँखें जिसकी

तस्वीर टंगी है
दीवार पर उसकी
कील दे रही सहारा
और धागा मैं हूँ

जिससे बँधकर
टँगी है
उस पल्लू में छुपी
खूबसूरती उसकी

एक तस्वीर अपनी भी
टाँग रखी है ठीक सामने
ताकि निहार सकूँ
दीवार की खूबसूरती

दीवार से...

५ मई २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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