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अनुभूति में घनश्याम तिवारी की
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मुस्कुराने के लिये
शब्द

मुस्कुराने के लिये

कली को मालूम नहीं खिलने पे क्या होगा
बिछड़ेगी डाली से या बाग में महकना होगा
कौन जाने भंवरे मंडरायेंगे रस की खातिर
खिलना है जीवन उसका उसे खिलना होगा . . .
पूजा में चढ़ेगा या यों ही झर जायेगा
क्या पता गजरे में कोई लगायेगा
किसी सुहाग सेज की शोभा बनेगा
या कोई अर्थी पे सजा ले जायेगा।
इक डाल पे कुछ फूल खिल जाते हैं
कहीं भी ले जा के सजा दो सज जाते हैं
मंदिर हो या मरघट शिकवा नहीं करते
मुस्कुराना है जीवन वे मुस्कुराते हैं।
फूल खिलता है किसी काम आने के लिये
जीवन मिलता है किसी का हो जाने के लिये
कितना नादान है जो रोता है जिंदगी सारी
वक्त भी मिलता है यारो मुस्कुराने के लिये।

८ जून २००३
 

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