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अनुभूति में घनश्याम तिवारी की
रचनाएँ —

छंदमुक्त में—
गुलाब की रौनक
जीवन रहस्य
मुस्कुराने के लिये
शब्द

गुलाब की रौनक

गुलाब की रौनक तुझमें हैं,
खस की महक तुझमें हैं,
चमेली सी चुपचाप रहती हो
जुही सी लचक तुझमें हैं।।
शराबी आँखों का शरमाना मुझे भा गया,
कुंदकली से ओठों का मुस्कुराना मुझे भा गया,
तड़पाती उस आवाज को क्या कहूँ मैं
लाल चुनरी में रूप सुहाना मुझे भा गया।।
फूलों को शरमा दे मुस्काना तेरा,
लाजवन्ती को लजा दे लजाना तेरा,
तुझ लाजवाब का जवाब नहीं है
भौंरों को चुप करा दे गुनगुनाना तेरा।।
पतंगे को है दीपक से, तुझे वो प्यार करता हूँ,
दहकते हुस्न की चाहत मैं हर बार करता हूँ,
मालूम है तेरा करीब आना बर्बाद करेगा मुझे
दीदार के वास्ते चकोर सा इंतजार करता हूँ।।
कुरान की हर रूबाई में तुझे खोजा मैंने,
रामयण की हर चौपाई में तुझे खोजा मैंने,
बाइबिल, गीता, गुरूग्रन्थ में न पा सका
पाया अपने अंदर जहाँ नहीं खोजा मैंने।।
दिन गुजरे रात गुजरे,
गर्मी जाये बरसात गुजरे,
गुजर जाये जीवन सारा
लेकिन तेरे साथ गुजरे।।

८ जून २००३
 

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