रात के सफर में
जब चित्त उद्विग्न हो
और थककर बैठो
किसी सरोवर के किनारे
तो तालाब के थिर जल में
चुने हुए कंकर फेंककर
हलचल पैदा करते रहो
क्योंकि जीवन के किसी पड़ाव पर
ठहराव की कुढ़न नहीं होनी चाहिए।
रंगों में अभिव्यक्ति तलाशना
या सिर्फ कविता लिखना काफी नहीं
उद्देश्य के लिए अनवरत
संघर्षों की आग में तपो
क्योंकि गंतव्य के रास्ते में
कोई फिसलन नहीं होनी चाहिए
जब धरती–आकाश
भीग जाएँ साथ साथ
सर्द हवा चुभने लगे और गीला हो जाय
आँखों का दोनो कोना
तो मौसम के ठंडेपन को
अन्तर की आँच से झटकार दो
क्योंकि रात के सफर में
कोई सिहरन नहीं होनी चाहिए।
८ नवंबर २००३ |