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इसी काया में मोक्ष
बहुत दिनों से मैं
किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ
जिसे देखते ही लगे
इसी से तो मिलना था
पिछला कई जन्मों से।
एक ऐसा आदमी जिसे पाकर
यह देह रोज़ ही जन्मे, रोज़ ही मरे
झरे हरसिंगार की तरह
जिसे पाकर मन
फूलकर कुप्पा हो जाए।
बहुत दिनों से मैं
किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ
जिसे देखते ही लगे
अगर पूरी दुनिया अपनी आँखों नहीं देखी
तो भी यह जन्म व्यर्थ नहीं गया
कि पा गया मैं उसे
जिसे मेरे पुरखे गंगा नहाकर पाते थे
किसी को मैं अपना कलेजा
निकालकर दे देना चाहता हूँ
मुद्दतों से मेरे सीने में
मर गया है अपार मर्म
मैं चाहता हूँ कोई
मेरे पास भूखे शिशु की तरह आए
कोई मथ डाले मेरे भीतर का समुद्र
और निकाल ले सारे रतन
मैं जानना चाहता हूँ
कैसा होता है मन की सुंदरता का मानसरोवर
छूना चाहता हूँ तन की सुंदरता का शिखर
मैं चाहता हूँ मिले कोई ऐसा
जिससे मन हज़ार बहानों से मिलना चाहें
बहुत दिनों से मैं
किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ
जिसे देखते ही
भक्क से बर जाए आँखों में लौ
और लगे कि दीया लेकर खोजने पर ही
मिलेगा धरती पर ऐसा मनुष्य
बहुत दिनों से मैं
किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ
जिसे देखते ही लगे
करोड़ों जन्मों के पाप मिट गए
कट गए सारे बंधन
कि मोक्ष मिल गया इसी काया में।
८ नवंबर २००३ |