अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में धीरेन्द्र प्रेमर्षि की रचनाएँ 

गीतों में
गीत एक संगीत का
दिल रेशम की चुनरी तो नहीं
नेह दीपक

संकलन में
गुच्छे भर अमलतास- जल रहा जिया

 

गीत एक संगीत का

अधर पे ना थे गीत न कोई
भाषा की थी रीत
मानव मन में पनपा होगा
पहली दफा जब प्रीत
लेकर पक्षी का कलरव और
नदियों के जल गान
मनुष्य की अभिव्यक्ति बन
जनमा था तब संगीत

वो पत्तों की सर सर ध्वनि और
बरसात की वो सन सन
झर झर बरखा की फुहार और
मेघों का वो गरजन
कर अनुकरण इसी का हमने
जब सि
रजा कोई गीत
दुनिया की आदिम भाषा
बन गूँज उठा संगीत

ना थी वाणी की गति यति लय
सृष्टि थी जब मूक
किस ने जगाई थी आखिर
लोगों में इसकी भूख
दानव दल के विचरण से
जब मानव था भयभीत
मुस्कानों की भाषा शिक्षक
बन आया संगीत

यही है वह जो सदियों से
आपस में दिल को जोड़े
ताल सुरों के संग चले
ना साथ किसी का छोड़े
ना कोई सीमा ना कोई बंधन
सबका है यह मीत
किसी से कोई भेद करे ना
जग प्यारा संगीत

१६ फरवरी २००२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter