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डगर
डगर
सोंधी भी,
डगर सुगंधित भी,
डगर कंटीली भी,
उभचुभ और दुरूह भी
लेकिन पार होता है
यात्री का विश्वास
अनवरत प्रयास
डगर ही तो है
छोटी सी भूल
कर जाती है उलूल जुलूल
तोड़ती है पांव
हाथ से निकल जाता है दांव
लेकिन वही डगर
वक्त नहीं देखता है अगर मगर
बन जाता है वामन से विराट
पहुंचाता है क्षितिज के पार
पहुंचाना ही डगर की खेती
बीज ह्यमंत्रहृ है चरैवेति
१ मई २००४
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