अनुभूति में
ब्रज श्रीवास्तव
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
आज की सुबह
क्रूरता
खबर के बगैर
तब्दीली
तुम्हारी याद का आना
न जाने कौन सी भाषा से
भव्य दृश्य
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न
जाने कौन सी भाषा से
यह कथित विशाल अस्तित्व
हुआ धराशायी
किसी की चाहत की आँधी में
हर समय हवा की तरह उड़ता मन
दिन-रात ताल में चलते कदम
हर कोशिश में हमराह होती आँखें
सब हार मन गए हैं
सामने आता हर दृश्य स्तब्ध हुआ
साँस से साँस की बातचीत तक सुनाई देने लग गई
एक ही एक बिम्ब दिखाई दे रहा है सब तरफ़
ओस की बूँदों से सजा
बुदबुदाना भी भूल गए हैं होंठ
न जाने कौन सी भाषा से
पहचाना जा रहा होगा मुझे इन दिनों।
२३ जनवरी २०१२
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