सूर्य
चंपे के फूल मुँह उठाए
देखते हैं सूर्य की ओर,
तार पर बैठी एक चिड़िया
ताकती है सूर्योदय,
जाड़े में सरदी से कुकुड़ता
एक बच्चा उम्मीद से
बैठता है धूप में।
अपनी धुरी पर स्थिर और अचल
सूर्य
देखता है फूल को, चिड़िया को,
बच्चे को
अपने ही प्रताप से
पकती फ़सलों को
सूर्य को नहीं सूझ पड़ती
वनस्पतियाँ, लोग और
रंभाते-जमुहाते पशुओं की कतारें
सूर्य ऊपर की ओर देखता है
शून्य में, अन्यमनस्क
सूर्य के धधकते अंतस में
बैठा है अंधेरा
सूर्य को दिखाई नहीं देता
धूप न सूर्य की नन्हीं उँगलियाँ
हैं
न आँखें
धूप सिर्फ़ दृष्टि है
सब पर बिखरी पर कुछ भी न देख पाती
एक नेत्रहीन की।
२४ मार्च २००६ |