अनुभूति में अशोक वाजपेयी की रचनाएँ-
एक बार जो
प्यार करते हुए सूर्य स्मरण
वे बच्चे
समय से अनुरोध
सूर्य
सड़क पर एक आदमी |
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समय से अनुरोध
समय, मुझे सिखाओ
कैसे भर जाता है घाव? -पर
एक अदृश्य फांस दुखती रहती है
जीवन-भर।
समय, मुझे बताओ
कैसे जब सब भूल चुके होंगे
रोज़मर्रा के जीवन-व्यापार में
मैं याद रख सकूँ
और दूसरों से बेहतर न महसूस करूँ।
समय, मुझे सुझाओ
कैसे मैं अपनी रोशनी बचाए रखूँ
तेल चुक जाने के बाद भी
ताकि वह लड़का
उधार लाई महँगी किताब एक रात में ही पूरी पढ़ सके।
समय, मुझे सुनाओ वह कहानी
जब व्यर्थ पड़ चुके हों शब्द,
अस्वीकार किया जा चुका हो सच
और बाकी न बची हो जूझने की शक्ति
तब भी किसी ने छोड़ा न हो प्रेम,
तजी न हो आसक्ति,
झुठलाया न हो अपना मोह।
समय सुनाओ उसकी गाथा
जो अंत तक बिना झुके
बिना गिड़गिड़ाए या लड़खड़ाए,
बिना थके और हारे, बिना संगी-साथी,
बिना अपनी यातना को सबके लिए गाए,
अपने अंत की ओर चला गया।
समय, अंधेरे में हाथ थामने,
सुनसान में गुनगुनाहट भरने,
सहारा देने, धीरज बँधाने,
अडिग रहने, साथ चलने और लड़ने का
कोई भूला-बिसरा पुराना गीत तुम्हें याद हो
तो समय, गाओ
ताकि यह समय,
यह अंधेरा,
यह भारी
यह असह्य समय कटे!
२४ मार्च २००६ |