अनुभूति में
अनुपमा त्रिपाठी की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अनमोल पल
कोई खेतों सी
झरने लगी कविता
पलाश के
प्रगाढ़ भावों में
शब्द शब्द मन पर छाया
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शब्द शब्द मन पर
छाया
हृद घट पल पल भरता
शब्द शब्द मन पर छाया
दहकता
प्रेममय रंग मय
अस्तित्व पलाश
अपने ही लाल रंग में
इस तरह भिगो जाता है मुझे
जैसे कह रहा हो
रंग है प्रेम का
तो धूप में भी है निखार
लाख धूप में सुखाऊँ
पलाश से रंगा मन
ये रंग है कि बस
धूप में तप कर भी
स्वर्णिम सा
और निखरता जाता है
चढ़ता ही जाता है
पलाश
तुम्हारे ही रंग से
निज प्रात
सुलभ होती है
प्रभा आभा की
अनुभूत है ये रंग
तभी तो सार्थक है जीवन का संग
१४ जुलाई २०१४
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