अनुभूति में
आनंद क्रांतिवर्धन की रचनाएँ
दोपाया चौपाया
पानी उर्फ गधा
प्रायोजित
वनवास
प्रेमशिला
राजू का सपना
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प्रेमशिला
हे प्रेमशिला,
इस तरह मरकर,
तुमने अच्छा नहीं किया।
जब सरकार
महिलाओं के आरक्षण के लिए
सभी दलों को मनाने का
प्रयास कर रही थी,
जब सरकार ने डी.टी.एच. के लिए
अनुमति दे ही दी थी,
फिर मात्र दो रोटी के लिए
तुम्हें जान देने की क्या ज़रूरत थी।
माना कि तुम कष्ट में थीं
तुम्हारे बच्चे भूखे थे
और बोलनगीर में
अकाल पड़ रहा था,
पर सरकारी गोदामों में तो
अनाज सड़ रहा था,
सरकार उसे समुद्र में थोड़े ही फेंक देती,
कुछ ही दिनों में
तुम्हें अनाज देने का
फैसला ले ही लेती
क्या तुम नहीं जानती
सरकार अभी व्यस्त थी,
डिसइन्वेसमेंट पर बहस चल रही थी,
और कल तो बहस का पीक था,
ऐसे में
सरकार को डिस्टर्ब करना क्या ठीक था?
क्या कुछ दिन और सब्र नहीं कर सकती थीं?
अरे मरना ही था
तो कुछ दिन बाद नहीं मर सकती थी
तुम ही बताओ प्रेमशिला
इससे सरकार की कितनी बदनामी हुई।
तुमने कई दिनों तक कुछ नहीं
खाया
जो मिला उसे बच्चों को खिलाया
तुम भूख से इतना डर गई
कि चंद ही दिनों में मर गई
अरे तुमने इतना भी नहीं सोचा
इससे अमरीका और यूरोप को
क्या मैसेज जाएगा
अब कोणार्क का सूर्य मंदिर देखने
कौन विदेशी आएगा
प्रेमशिला
तुम्हारी किसी दलील में दम नहीं है
तुम्हारा इस तरह मरना
किसी देशद्रोह से कम नहीं है
जब प्रियंका चोपड़ा
पूरी दुनिया में
भारतीय महिलाओं का नाम ऊँचा कर रही थी,
तब तुम मात्र दो टुकड़ों के लिए मर रही थीं।
तुम्हारा यह काम
कितना नीच और घटिया है।
प्रेमशिला
तुम नहीं जानती
तुमने मरकर
खामखाँ नेशनल क्राइसिस खड़ा कर दिया है
वर्ल्ड बैंक ने
अपनी रिपोर्ट में
तुम्हारा ज़िक्र कर दिया है
अगला लोन मंज़ूर होने में
दिक्कत आएगी,
क्योंकि पिछले के खर्च की जाँच करने,
वहाँ से टीम आएगी।
प्रेमशिला
मरते हुए तुमने यह भी नहीं सोचा
कि पूरा देश
नए साल के स्वागत की तैयारी कर रहा है
हर पाँच सितारा होटल,
दुल्हन की तरह सज रहा है,
रंग में भंग डालना
क्या अच्छी बात है प्रेमशिला,
तुम ही बताओ
इस तरह मरकर तुम्हें क्या मिला।
हे समय के विवेक,
इधर देख,
ऐसा क्यों होता है,
अक्सर, कुएँ के पास ही,
प्यासा अपनी जान क्यों खोता है?
२८ जनवरी २००८ |