अनुभूति में
आनंद क्रांतिवर्धन की रचनाएँ
दोपाया चौपाया
पानी उर्फ गधा
प्रायोजित
वनवास
प्रेमशिला
राजू का सपना
|
|
प्रायोजित
वनवास
राम लक्ष्मण और सीता
चौदह साल के
वनवास के लिए
जाने को तैयार खड़े थे
अयोध्यावासी
चरणों में पड़े थे
राम उन्हें दिलासा दे रहे थे
पर खुद उनके आँसू
रुकने का नाम नहीं ले रहे थे
जब महँगाई की दर
हनुमान की पूँछ की तरह
लगातार बढ़ती जा रही है
और महर्षि मनमोहन सिंह के
काबू में भी नहीं आ रही है,
ऐसे में चौदह वर्ष तक
खर्च कैसे चलेगा,
जीवन का रथ
कैसे आगे बढ़ेगा?
काश,
कोई प्रायोजक ही मिल जाता,
कम से कम
कंद मूल का खर्च तो निकल आता
तभी उनका सैक्रेट्री
दौड़ता हुआ आया,
और उनके कान में
ज़ोर से चिल्लाया-
बधाई हो सर,
कांग्रेचुलेशंस,
हल हो गई सारी प्रोब्लम्स
टाटा स्टील वाले मान गए हैं
टाटा स्टील वाले मान गए हैं
वे आपके चौदह वर्ष के
वनवास को स्पोंसर करेंगे
शर्त लेकिन ये है कि-
भालुओं और बंदरों के बीच
आप उनके लिए
मार्केटिंग करेंगे,
आप जब भी चलाएँगे,
जिस पर भी चलाएँगे,
सिर्फ़ टाटा स्टील से बना
तीर ही चलाएँगे
राम ने
उन्नत ललाट साभार झुकाया,
और टाटा स्टील के
तीरों से भरा तरकस
कंधे पर चढ़ाया।
वे अभी चित्रकूट तक ही पहुँचे थे
कि बाटा का फैक्स मिला
नार्थस्टार और हंटर शूज भिजवाऊँगा
चौदह साल तक
जूतों का खर्च उठाऊँगा
एग्रीमेंट करो
कि किसी लोकल ब्रांड को हाथ नहीं लगाऊँगा
भरत
यों तो राम के भ्राता थे,
पर मार्केट में बैठते थे
हर ऊँच नीच के ज्ञाता थे,
फिर लोकल ब्रांड खड़ाऊ के निर्माता थे
यह सुनते ही
तैश में आ गए
और राम के पाँवों से
अपनी देसी ब्रांड खडाऊ उतार कर
अयोध्या वापस आ गए
२८ जनवरी २००८
|