अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में आग्नेय की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आखेट
चयन
प्रतिध्वनि
प्रस्थान
मरण

  आखेट

तुम
उस परिन्दे की तरह
कब तक डैने फड़फड़ाओगे
जिसकी गर्दन पर रखा हुआ है
चाहत का चाकू

उड़ान भरने के पहले ही
तुमने खो दिए हैं अपने पंख
प्यास बुझने के पहले ही
विष पी लिया
अमृत पान के लिए
तुम्हारे जैसा कौन मरता है
लालसाओं के जलसाघरों में
तिल-तिल, घुट-घुट कर
न तुम्हें प्रेम करना आया
बहती रही वह
तुम्हारी धमनियों में
रक्त की वर्णमाला की तरह
अलिखित अपरिभाषित
और न तुम्हें घृणा करना आया
जिसे तुम नकटी जादूगरनी
कहते ही उदास होकर रो देते हो
सारा जीवन किसके मायाजाल में
जकड़े रहे
कि अन्त में स्पाइडर की तरह
अपनी ही वासना की चरम परिणति में
आखेट कर लिए गए।

१८ मई २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter