सहमी सी पायल
सहमी सी पायल की रुनझुन सिमट गई
तनहाई तक
पहुँच न पाते कितने सपने डोली तक शहनाई तक
मन से लेकर आँखों तक अनकही व्यथा
अंकित होगी
कैसे कैसे दिन देखे हैं बचपन से तरुणाई तक
अंबर से पाताल लोक तक चुभती हुई
निगाहें है
अक्सर ज़रा-ज़रा सी बातें ले जातीं रुसवाई तक
हृदय सिंधु की एक लहर का भी स्पर्श
न कर पाए
जिनका दावा जा सकते हैं सागर की गहराई तक
शहर गाँव घर भीतर-बाहर सब हैं उनके
घेरे में
पहुँच चुके हैं साँपों के फन देहरी तक अँगनाई तक
सीता कभी अहिल्या बनती, कभी
द्रौपदी, रूप कंवर
जुड़ी हुई है कड़ी-कड़ी सब फूलन भंवरीबाई तक
२९ जून २००९ |