अनुभूति में
सुधीर कुशवाह
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
झूठ बातों का सदा प्रतिवाद
दूसरों के वास्ते भी
पर्वतों से घाटियों से
फूल जितने भी हमारे पास |
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फूल जितने भी
हमारे पास
या तो अपने साथ अपना सर नहीं रखते
या कि यूँ खुद को कभी खुलकर नहीं रखते।
फूल जितने भी हमारे पास हैं ले लो
हम किसी के वास्ते नश्तर नहीं रखते।
जो भी कहना है किसी से खुल के कहते हैं
हम जो दाढ़ी पेट के अंदर नहीं रखते।
सिर्फ इतनी ही शिकायत हमको रहती है
आप अपनी बात क्यों हँस कर नहीं रखते।
हमको आता ही नहीं मजमा लगना यार
हम कभी भी पालतू बंदर नहीं रखते।
अब चलो अपमान का ये घूँट भी पी लें
प्यार में यारो जहर, अंदर नहीं रखते।
१६ जुलाई २०१२ |